गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

वायदा बाजार का हीरो बेनूर

ग्वार के पिछले तेज भावों ने किसानो व्यापारियों दोनों को परेशान कर रखा है ! स्टाक और फसल का ग्वार न निगलते बनता है न उगलते बनता है इसी उधेड़बुन में भाव घटते घटते 4500 रूपये किवंटल तक आ गये है !पहले उम्मीद थी की वायदा में शामिल होते ही ग्वार तेज हो जायेगा मगर वायदा में आने के बाद तो नीचे कि तरफ ही सरक रहा है ! ताजुब इस बात का भी है कि वायदा में भी कारोबार बहुत कमजोर है !अभी तक कोई ऐसी बात नजर नही आती की भाव बढ़ जाये ! वायदा बाजार का हीरो बेनूर सा होगया है !फिर भी ग्वार कि ठसक तो देखिये 6 दिसंबर को जयपुर में पांच सितारा सेमिनार हो रही है जिसकी एंट्री फीस दस हजार रूपये रखी गई है !
           वायदा बाजार की कृर्षि जिंसो में आज कल तेल और अरंडा हीरो बना हुआ है ! अभी सटोरियों की इन पर नजरें इनायत है ! रोजाना की बड़ी तेजी मंदी बेवजह आये जा रही है !नई फसलें भी आने वाली है !देखते है आगे आगे होता है क्या !

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

सेबी की तरह वायदा बाजार के नियामक को स्वायत्ता तो आयोग को ताकत

पहरेदार सावधान की मुद्रा में है ! सजग भी है ! पर कलमी लाठी इजाजत लेकर ही चलायेगा !ऐसा ही कुछ् वायदा बाजार आयोग के साथ दिखता है ! पूर्ण स्वायता नही होने से अधिकतर कामों के लिए इजाजत ऊपर से लेनी होती है ! सरकार का रूख कोमोडिटी नियामक को मजबूत करने की मंशा रखने वाला नही लगता है! वरना क्या कारण है की फारवर्ड कांट्रेक्ट रेगुलेशन एक्ट 1952 का बदलाव करने वाला बिल साल 2006 से लाइन में खड़ा है ?और कई बार केबिनेट की मंजूरी के बाद भी लोकसभा में रखा नही जा रहा ? हर बार लोकसभा मीटिंग शुरू होने पर खबरें आती है की ये बिल अब आ रहा है पर नतीजा पहले कि तरह सिफर ही मिलता है ! सेबी की तरह वायदा बाजार के नियामक को स्वायत्ता देने वाला fcra बिल क्यों अटका पड़ा है ? कारण भी सामने नही आ रहे ! fcra बिल पारित नही होने से आयोग को फेसले लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ! fcra 1952 के तहत ही साल 2003 में वायदा कारोबार की अनुमति मिली और राष्ट्रिय स्तर के एक्सचेंज सामने आये !कारोबार शुरू होने के साथ समस्यायें भी शुरू हुई जिसके लिये कानून में बदलाव की जरूरत भी महशुस हुई ! आयोग के स्वायत नही होने से मंत्रालय से दिशा निर्देश लेने पड़ते है पहले यह उपभोगता मामलात मंत्रालय के अधीन था अब यह वित् मंत्रालय के अधीन है !                
                     यदि बिल शीतकालीन सत्र में पारित हो जाता है तो आयोग को ताकत मिल जायेगी जिससे नई जिंसो को वायदा में चालू करना , व्यापार को पारदर्शी बनाने जैसा बड़ा काम, कमोडिटी इंडेक्स पर वायदा व्यापार चालू करना ,संगठित व्यापार पर प्रभावी रोक ,इलीगल कारोबार में सीधे सीज या सर्च जेसी कार्यवाही , आफसन ट्रेडिंग चालू करने जैसे कई काम प्रगति में आ सकते है ! हालही में nsel में  एक बड़ा घपला सामने  आया जिसमे हजारों करोड़ का हेरफेर बताया गया है !कुछ गिरफ्तारियां भी हुई है ! nsel मामले में निगरानी की कमी देखी गई ! हालाँकि नेशनल स्टाक एक्सचेंज में हुआ 5650 करोड़ रूपये का घपला वायदा बाजार आयोग के दायरे में नही था ! किन्तु अब घपला होने के बाद आयोग का कार्य क्षेत्र बढ़ाने और स्वायत्ता देने की जरूरत तो महशुस हो ही रही है !   

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

ग्वार और ग्वारगम क्रांति

एक लाख रूपये प्रति क्विंटल के भाव बना चुके ग्वारगम ने राजस्थान हरियाणा गुजरात में ग्वार और ग्वारगम क्रांति ला दी! इस भाव क्रांति ने ग्वार बिजाई क्षेत्र को डेढ़ गुणा तक बढ़ा दिया वंही ग्वार से गम बनाने वाली फेक्टरियो की लंम्बी कतार भी खड़ी कर दी! बिजाई के मामले में गुजरात ने दम दिखाते हुए साल 2012 -13 की सीजन में दो बार ग्वार की फसल हासिल कर ली यह ग्वार की उपज का नया रिकार्ड बना ! दोनों बार पच्चीस -पच्चीस लाख बोरी की फसल ने गुजरात के सारे रिकार्ड तोड़ दिए ! आंध्रप्रदेश,कर्नाटक जैसे राज्यों में ग्वार की पैदावार ने ताजुब्ब कर दिया भले ही पैदावार कम हुई पर आने वाले समय में पैदावार का संभावित क्षेत्र तो बन ही गया ! ग्वारगम फेक्ट्री लगाने वाले नामी कारीगर दयाराम हरजी बताते है अब ग्वार से गम बनाने की क्षमता इतनी बढ़ गई है की रोजाना दो लाख बोरी ग्वार की दलाई हो सकती है ! साल 2011 से पहले ग्वारगम बनाने वाली फेक्टरियो की संख्या 150  के लगभग थी! जिनकी क्षमता रोजाना नब्बे हजार बोरी ग्वार दलने की थी ! साल 2011 के बादइन दो सालो में इकाइयों की संख्या 300 की गिनती पार कर चुकी है ! अभी हरियाणा में नब्बे गुजरात में तीस तथा राजस्थान में लगभग एक सौ अस्सी ग्वारगम इकाइयां स्थापित हो चुकी है जिनमे सबसे ज्यादा 55 ग्वारगम  इकाइयां जोधपुर में है !  
वायदा बाजार में एग्री कोमोडिटी का सरताज ग्वार अब तक तेजी मंदी की सिमित स्थिरता नही बना सका है हर दिन उपर या निचे का सर्किट लगना जारी है ! कम कारोबार के बावजूद सर्किट लगना यह दर्शाता है की बाजार अभी ग्वार के भावों का स्तर नही ढूंढ़ पाया है ! पिछली लंम्बी तेजी ने भावो की असमझ को बनाये रखा है !नये सिरे से खुले वायदा में दस टन के लोट को  घटा कर एक टन का 
कर देने के बावजूद करोबार में रूची पैदा नही हुई है ! हाजिर में नये ग्वार का श्री गणेश उतरी राजस्थान में हो गया है !हरियाणा गुजरात और गंगानगर की मंडियों में 18000 बोरी ग्वार प्रति दिन आना शुरू हो गया है ! आवक के साथ भाव घटने लगे है 5500 से 6000 रूपये प्रति क्विंटल के दामो से बिक रहा है ! ग्वार की तेजी विदेशी मांग पर निर्भर रहेगी !विदेशी मांग का जोर अभी तक बना नही है ! फ़िलहाल बीस कंटेनर ग्वार गम का निर्यात रोजाना हो रहा है जो पर्याप्त नही है ! निर्यातको ने बातचीत में बताया की मांग पेंतीस प्रतिशत कम है और यह चिंता जनक है ! ग्वार से गम के आलावा 70 %पशु आहार के रूप में चुरी व कोरमा निकलता है चुरी 1600 रूपये प्रति क्विंटल और कोरमा 2500 रूपये प्रति क्विंटल के भावो से तेज बना हुआ है इन पशु आहारो ने ग्वार के भाव संभालने में काफी मदद की है ! पर जैसे जैसे मिलो में नये ग्वार की दलाई होगी पशु आहार के भाव भी उपलब्धता के कारण घटेंगे !

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

बाजार अभी ग्वार के भावों का स्तर नही ढूंढ़ पाया है

एक लाख रूपये प्रति क्विंटल के भाव बना चुके ग्वारगम ने राजस्थान हरियाणा गुजरात में ग्वार और ग्वारगम क्रांति ला दी ! इस भाव क्रांति ने ग्वार बिजाई क्षेत्र को डेढ़ गुणा तक बढ़ा दिया और ग्वार से गम बनाने वाली फेक्टरियो की लंम्बी कतार भी खड़ी कर दी ! बिजाई के मामले में गुजरात ने फसली दम दिखाते हुए साल 2012 -13 की सीजन में दो बार ग्वार की फसल हासिल कर उपज का नया रिकार्ड बना दिया ! दोनों बार पच्चीस -पच्चीस लाख बोरी की फसल ने गुजरात को मुख्य उत्पादक की श्रेणी में खड़ा कर दिया ! आंध्रप्रदेश,कर्नाटक जैसे राज्यों में भी ग्वार की पैदावार हो सकती है यह भी भाव क्रांति ने संभव कर दिखाया भले ही पैदावार कम हुई पर आने वाले समय में पैदावार का संभावित क्षेत्र तो बन ही गया ! ग्वारगम फेक्ट्री लगाने वाले नामी कारीगर दयाराम हरजी बताते है अब ग्वार से गम बनाने की क्षमता इतनी बढ़ गई है की रोजाना दो लाख बोरी ग्वार की दलाई हो सकती है ! साल 2011 तक ग्वारगम बनाने वाली फेक्टरियो की संख्या 150  के लगभग थी ! जिसकी क्षमता रोजाना नब्बे हजार बोरी ग्वार दलने की थी ! साल 2011 के बाद दो सालो में ग्वारगम का भविष्य उज्ज्वल देखते हुए धडाधड ग्वारगम इकाइयों की स्थापना होने लगी और ये संख्या 300 की गिनती पार गई ! अभी हरियाणा में नब्बे गुजरात में तीस तथा राजस्थान में लगभग एक सौ अस्सी ग्वारगम इकाइयां स्थापित हो चुकी है जिनमे सबसे ज्यादा 55 ग्वारगम  इकाइयां अकेले जोधपुर शहर में है !अब कमजोर विदेशी मांग और प्रतिस्प्रदा ने इन इकाइयों पर संकट खड़ा कर दिया है !  
वायदा बाजार में एग्री कोमोडिटी का सरताज ग्वार अब तक तेजी मंदी की सिमित स्थिरता नही बना सका है हर दिन उपर या निचे का सर्किट लगना जारी है ! कम कारोबार के बावजूद सर्किट लगना यह दर्शाता है की बाजार अभी ग्वार के भावों का स्तर नही ढूंढ़ पाया है ! गौर तलब है की ग्वार को कम भावों पर नही बेचने के विज्ञापन लंम्बे समय से एक उधोगपति देते आ रहे है अजूबा इस बात का है की लगभग हर सलाह के बाद ग्वार के भाव निचे की तरफ आये है ! पिछली लंम्बी तेजी ने भी भावो की असमझ को बनाये रखा है !नये सिरे से खुले वायदा में दस टन के लोट को  घटा कर एक टन का 
कर देने के बावजूद करोबार में खास रूची पैदा नही हुई है और वोलिय्म का पुराना मुकाम हासिल नही हुआ है ! हाजिर में नये ग्वार का श्री गणेश उतरी राजस्थान में हो गया है !हरियाणा गुजरात और गंगानगर की मंडियों में 18000 बोरी नया ग्वार प्रति दिन आना शुरू हो गया है ! आवक के साथ भाव घटने लगे है 5500 से 6000 रूपये प्रति क्विंटल के दामो से बिक रहा है ! ग्वार की तेजी विदेशी मांग पर निर्भर रहेगी !निर्यातको का मानना है विदेशी मांग का जोर अभी तक बना नही है ! फ़िलहाल बीस कंटेनर ग्वार गम का निर्यात रोजाना हो रहा है जो पर्याप्त नही है ! निर्यातको ने बातचीत में बताया की मांग पेंतीस प्रतिशत कम है और यह चिंता जनक है ! ग्वार से गम के आलावा 70 %पशु आहार के रूप में चुरी व कोरमा निकलता है चुरी 1600 रूपये प्रति क्विंटल और कोरमा 2500 रूपये प्रति क्विंटल के भावो से तेज बना हुआ है इन पशु आहारो ने ग्वार के भाव संभालने में काफी मदद की है ! पर जैसे जैसे मिलो में नये ग्वार की दलाई होगी पशु आहार के भाव भी उपलब्धता के कारण घटेंगे !
 

रविवार, 29 सितंबर 2013

वायदा में शब्दों का भ्रम जाल

लग सकती है 100 करोड़ की पेनल्टी 
वायदा बाजार में ग्वार अपने ढरे के साथ नित्य उपर या निचे के भावों का सर्किट लगा ही रहा है ! घाटे मुनाफे की बड़ी हारजीत ने आम व्यापारी का मोह भंग कर दिया है ! वायदा में कृषि जिंसो का सरताज ग्वार उपेक्षित होने लग गया है ! कृषि जिंस बाजार को वायदा में आकर्षित करने वाला ग्वार ही था जिसके दम पर अन्य जिंसो को भी वायदा में स्थान मिला ! पिछले दो सालों से चल रहे भारी उथल पुथल ने एक बार ग्वार को वायदा से बाहर का रास्ता दिखा दिया ! अब फिर वायदा में शामिल हुए ग्वार के प्रति fmc सचेत है ! इसीका नतीजा था की ग्वार वायदा की लगातार जाँच हुई और कई व्यापारियों को वायदा से निलम्बित करने के साथ भारी जुर्माना लगाया गया था ! खबरों के अनुसार एक बार फिर जाँच के घेरे में आये पुराने दोषियों के खिलाफ 100 करोड़ रूपये की जुर्माना राशी लगने वाली है !
    राजस्थान में चल रही बारिश से ग्वार को नया जीवन दान मिल गया है ! प्यासी फसलों में काफी सुधार हुआ है ! व्यापारिक आंकलनो के अनुसार देश में 25 लाख टन ग्वार पैदावार का अनुमान है ! तेजी मंदी के लिहाज से सारा दारोमदार विदेशी मांग पर निर्भर रहेगा ! हाल में चल रही बारिश से चना ,सरसों की बिजाई के लिए उपयुक्त वातावरण तेयार हो गया है उमीद्द की जा सकती है की दोनों फसलो की सांगोपांग बुवाई होगी !
वायदा में शब्दों का भ्रम जाल 
                सरकार की जैसे ही चेतना जागृत हुई सट्टे को वैधानिक बनाया इसका नाम सट्टे से बदलकर वायदा,फारवर्ड मार्केट और फ्यूचर मार्केट हो गया ! जब तक अवैधानिक था नाम सिर्फ सट्टा ही था! नाम के साथ सट्टे में सेंकडो वर्षो से प्रचलित शब्दकोष बदल गया ! भारतीय सट्टा बाजार में व्याख्या के लिए तेजड़िए ,मंदडीये,बदला,नजराना,झोटा,दलाल,आढतिया जैसे सीमित और आसान शब्द प्रयोग होते थे ! वंही वायदा बनते ही इस बाजार में नये नये शब्दों ने जन्म ले लिया ! लिवाल  (लांगपोजीशन) बिकवाल (शोर्टपोजीशन) ब्याज बदला (आर्बिट्रेज), खड़े सौदे ( ओपन इंटरेस्ट) कटान (सेटलमेंट प्राइस) हाजिर घटनाये (फंडामेटल) बेवजह तेजी मंदी (टेक्निकल) इक तरफा तेजी (रेली) इक तरफा मंदी( डिप), छोटी तेजी मंदी को प्रॉफिट टेकिंग के नाम से परिभाषित कर दिया !  डी मेट ,री मेट ,जोबर ,कार्टेल ,ब्रोकर ,मेन क्लाईंट जैसे अनेक शब्दों ने इसे घुमावदार बना कर चकरघिनी कर दिया है ! हिंदी शब्दों का तो नामोनिशान नही है ! प्रयुक्त अंग्रेजी शब्दों का अर्थ निकले तो कुछ और ही नजर आएगा ! अभी वायदा शब्द बचा है ये भी लुप्तप्राय होकर फारवर्ड मार्किट के नाम से ही जाना जायेगा !
       व्यापार का बदला तौर तरीका 
           वायदा व्यापार करने का तौर तरीका भी काफी कुछ बदला है ! पहले स्थानीय स्तर की जानकारी का ही महत्व था वंही अब विश्व में चल रहे घटनाक्रम ज्यादा प्रभावित करते है ! वायदा व्यापार के लिये दुनिया भर की खबरें देखने के आलावा सरकारी रीती नीति का ख्याल रखना पड़ता है ! ये भी ध्यान रखना होता है की कोरपोरेट जगत की नजर किस जिंस पर है ! टेक्निकल ग्राफ बनाने वाले सॉफ्टवेयर से पल पल की जानकारी अहम हो गई है ! टी वी चैनलों पर खरीदने बेचने व घाटा मुनाफा (स्टाप लोश ) की जानकारी भी अपना एक स्थान रखने लग गई है ! कीमत चूकाकर टेक्निकल जानकारी सीधे कंप्युटर पर या मोबाईल पर सुचना उपलब्ध कराने वाली कई एजेंसिया कुकरमुते की तरह उग गई है ! पर कई बाते आज भी समान रूप से उतरी -दक्षणि भारत में प्रचलित है जिसमे ज्योतिषीय आधार जैसे चन्द्रमा की स्थिति ,पंचक और नक्षत्र देख कर व्यापार करना ,शकुन अपशकुन को मानना जैसी बाते अभी भी समान रूप से जारी है ! 

रविवार, 22 सितंबर 2013

ग्वार औंधे मुंह आ गिरा


चुनावी सरगर्मी ने प्याज को हीरो बना दिया है जहां देखो खबरों में प्याज ही प्याज है। जैसे बिना प्याज गुजारा ही नही हो रहा। उधर एक्‍सचेंज शुक्र मना रहे हैं कि प्याज वायदा बाजार में शामिल नहीं है वरना इस महंगाई का आरोप भी सीधा वायदा बाजार पर आ टिकता।
मंहगाई, चुनाव और बढ़ते घपलों की वजह से वायदा बाजार आयोग पहले से ही काफी सतर्कता बरत रहा है। इसे आप प्याज की बढ़ी कीमतों का साइड इफेक्ट भी कह सकते हैं। आपको याद होगा आयोग ने पिछले दिनों 25 शीर्ष ग्वार कारोबारियों की सूची मांगी थी। इसके बाद ऊपर की ओर उठता ग्वार लड़खड़ाकर औंधे मुंह आ गिरा। अब आयोग की नई कार्रवाई के तहत मैटलबेस मेटलएनर्जी जैसे गैर कृषि जिंसो का कारोबार भी शनिवार के दिन नहीं होगा। सूत्रों के अनुसार कई वेयर हाउसेज पर निगरानी के तहत आंशिक रोक लगाई गई है और क्वालिटी मैटर को भी जांच के घेरे में लिया गया है। जिंस वायदा में आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आने वाली वस्तुओं जैसे चीनी,चनातेलतिलहनआलू आदि पर तो खास नजर रखने की जरूरत हमेशा बनी रहेगी। इनकी तेजी मंदी सत्‍ता को विचलित कर सकती है।जैसे प्याज ने विचलित कर रखा है ! भाव घटे तो किसान परेशान और बढ़े तो उपभोक्‍ता। सरकार की स्थिति सांप के मुंह में नेवले जैसी हो गई है। न निगलते बने न उगलते। किसानों के भी वोट  चाहिए और ग्रेट इंडियन मिडिल क्‍लास के भी।
वित मंत्रालय के आधीन आए आयोग की सजगता को जहां छोटे कारोबारी सराह रहे हैं वहीं बड़े सटोरियों में खलबली मची हुई है। आयोग लगातार सजगता और जांच का भय बनाये रखे तो अनर्गल व्यापार से मुक्ति मिलने के साथ जिंस वायदा बाजार बड़े आकार में आ सकता है। जिंस वायदा को शुरू हुए एक दशक हो चुका है, लेकिन वॉल्‍यूम की बढ़ोतरी आशानुकूल नही है !कृषि जिंसो में वोलिय्म बढ़ोतरी के लिए बाजार आज भी तरस रहा है। मैं निजी तौर पर वायदा के खिलाफ नही बल्कि वायदा में सुधार का पक्षधर हूँ। जब भी आवश्यक वस्तुओं के वायदा पर लिखता हूं तो संबधित प्लेटफार्म के लोगों को वायदा विरोधी लगता हूँ। खैर अलग मत रखने का अधिकार अब भी सुरक्षित है।
भाव पत्र 
इधर, बीकानेर मंडी में नई मूंगफली की खुशबू आने लगी है। क्वालिटी खराब के कारण मूंगफली के औसत भाव 2600 रूपये प्रति क्विंटल से ऊपर नहीं जा पा रहे हैं। चना ऑल-पेड 2930 रूपये प्रति क्विंटल के भावों से नरमी बनाये हुए है। ग्वार की गत पहले से ही मंदी की चपेट में आकर खराब है। सप्ताह के शुरूआत में 7800 रूपये प्रति क्विंटल के भावों से बिका ग्वार सप्ताह के अंत तक 1800 रूपये प्रति क्विंटल के भाव देख गया, फिर एक बार 6000 रूपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया। भादवे के सूखे रहने से ग्वार सहित सभी फसलें खराब होने की खबरें आ रही है, वहीं कमजोर मांग के चलते ग्वार के भाव और भी गिर रहे है। गिरावट का दौर पूरे सप्ताह इकतरफा जारी रहा। निर्यातको के अनुसार हाल-फ़िलहाल मांग कमजोर है, पर आने वाले समय में इन भावों पर मांग निकल सकती है। वायदा बाजार में अक्टूबर अरंडा 3631, चना 3043, ग्वार 6480, सरसों 3489,सोयाबीन 3400 रूपये प्रति क्विंटल से बंद हुए।
चलते चलते --कई जगह हुई हल्की फुलकी बारिश थोड़ी राहत दे रही है ! रुपया भी डालर के मुकाबले संभल कर चल रहा है ! रिजर्व बेंक के ब्याज दर बढ़ाने से कार्पोरेट जगत नाराज है ! 

रविवार, 15 सितंबर 2013

पैदावार लायक जमीन को खाली छोड़ना ठीक नही

पैदावार लायक जमीन को खाली छोड़ना ठीक नही 
1965 मेंभारत के माननीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आह्वान किया था अनाज की कमी से निपटने के लिए किसी भी सुरत में पैदावार दे सकने वाली जमीन को बुवाई से खाली मत रखो ! सप्ताह में एक समय खाना मत खाओ ! खुद प्रधान मंत्री निवास में बैलो से हल चलाकर बुवाई की ! जनता ने घरों में खुली पड़ी जमीन पर सब्जिया उगानी शुरू की ! इसका अच्छा नतीजा सामने आया ! देश ने अपने तरीके से समस्या का निदान किया ! अस्तु !
पिछले सप्ताह मेने डालर,सोना,खाद्यान,उर्जा और मजदूरी के बारे में तुलनात्मक अध्यन के लिए नये- पुराने भावों को आपके सामने रखा ! यह किसान की उपज,हालात और उपभोक्ता को भावों की दृष्टि से देखने का प्रयास था!
कृषि जमीनों के बढ़ते भाव और खेती 
 इसी कड़ी में मैंने किसानो से जमीन और जोत के बारे में बात की ! जानने का प्रयास किया जमीनों के बढ़ते भावों से खेती में नफे नुकसान का ! सीधी साधी बात करें तो आबादी बढ़ रही है जोतने लायक जमीन कम हो रही है ! आबादी के हिसाब से कल कारखाने,सड़के और रिहाईशी उपयोग से जोत घटी है ! अंदरखाने झांके तो कुछ और भी कारण है जिससे किसान भूमिहीन हो रहा है ! और खेती घाटे का सौदा लग रही है ! थोडा नजदीकी इतिहास देखे तो बीकानेर जिले में सन 1990 -1992  में ठीक ठाक बारानी जमीन 700 से 1000 रूपये बीघा के बीच मिल जाती थी ! इसी समय नहरीकरण की योजना से पंजाब हरियाणा व स्थानीय किसानो ने खेती लायक जमीने लेनी शुरू की ! और सन 2000 -2001तक कीमते बढ़ते बढ़ते10000 रूपये बीघा हो गई ! यंहा तक तो ठीक था ! खेती करने वाले किसान ही खेती की जमीने ले रहे थे ! इसके बाद नया दौर शुरू हुआ ! महानगरो में रहने वाले आप्रवासी राजस्थानियों में प्रचार प्रसार शुरू हुआ की दस हजार रूपये बीघा की जमीन तो सिर्फ 35 पैसे स्कवायर फुट में ही मिल रही है ! जबकि कागज के भी यही दाम है ! तो क्यों नही जमीन ली जाये ? बस यंही से तेजी का दौर चालू और खेती की जमीने कारोबारियों ने निवेश के रूप में लेने की कवायद शुरू कर दी ! कारोबारियों ने दलालों के माध्यम से बिना जमीन काम मोका देखे ही कागज के भावों वाली जमीने खरीदनी चालू की और अगले पांच सालों में ही सन 2005 -2006 तक भावों को 80000 -85000 रूपये प्रति बीघा तक पहुंचा दिया ! पांच साल में ही कीमते आठ गुणा तक बढ़ जाने से खरीददारो में अतिरिक्त उत्साह जगा ! फिर तो इन्ही खरीददारो ने नई  नई उत्साहवर्धक योजनाये बनाकर प्रचार प्रसार किया जिससे जमीने खरीदने वालों की बाढ़ सी आ गई !योजनाओं में सबसे ज्यादा प्रचार इस बात का था कि आयकर माफ़ कृषि आधारित फसल से सालाना आयकर बचाया जा सकता है और साथ ही निवेश के रूप में जमीन भी सुरक्षित यानि एक काम से दो फायदे !पचीस बीघा (एक मुरबा )में सालाना चार लाख की फसल बताकर एक लाख बीस हजार रूपये आयकर की बचत !साथ ही यह प्रचार की सरकार नई नई योजनाये ला रही है जैसे सिलिकोन वेल्ली,सौर उर्जा ,ड्राई पोर्ट ,लिग्नाईट,सेज मेगा फ़ूड पार्क आदि आदि !इस प्रचार से नये खरीदारों का उदय हुआ इसमें राजनीतीज्ञ ,कोर्पोरेट ,और बाहरी लोग शामिल थे !इन लोगों ने अँधाधुंध जमीने खरीदनी शुरू की और पांच सालों में जमीनों के भाव सन 2011-2013 में ही 5 लाख रूपये प्रति बीघा तक पहुंचा दी ! गौर तलब है की यह भाव उन जमीनों के है जो शहर से दूरस्थ ग्रामीण इलाकों की है !शहर के पास वाली और राष्ट्रीय राजमार्ग के उपर की जमीने तो आसमान छूने लगी और इसके भाव प्रति बीघा 10 लाख से 15 लाख रूपये तक हो गये !इन भावो ने नये कारोबारी खड़े किये !यह कारोबारी थे कालोनिया और फार्म हॉउस व्यापार को पनपाने वाले !इन व्यापारियों या कंम्पनियो का फंडा बिलकुल सटीक और मुनाफे वाला था !और आनन फानन में कृषि भूमि पर सेंकडो कालोनिया और फार्म हॉउस विकसित होने लगे !इन जमीनों के ग्राहक भी भरपूर मिलने लगे !जो छोटे निवेशक है !इनमे बसने वाले कम और इन्वेस्मेंटर ज्यादा है ! जमीन की लोकेशन के आधार पर भिन्न भिन्न दामों से बिक्री लाभ का सौदा बन गया ! दो सौ रूपये वर्ग फुट से आठ सौ रुपया वर्ग फुट के दामो से कालोनियों की जमीने बिकने लगी !कालोनियों की इन जमीनों से 40 %सेट बेक (सड़के ,नाली ,पार्क आदि )छोड़ने पर भी 32 लाख से एक करोड़ तीस लाख रूपये प्रति बीघा तक के पैसे कोलोनाइजर को मिलने लगे! इसमें सडक ,नाली ,बिजली ,पानी आदि की व्यवस्था खर्च भी निकल दे तब भी यह बड़े मुनाफे का व्यापार हो गया ! देखते ही देखते जमीन दलालों की एक फौज खड़ी हो गई !पहले कृषि भूमि फिर प्लाट ,फार्म हॉउस आदि के सौदे कराने में इन दलालों का खूब योगदान रहा !
  किसान और जमीन 
           अब फिर हम अपने मूल विषय किसान और जमीन पर आते है !और देखते है खेती क्यों घाटे का सोदा हो रही है !किसान की पचीस बीघा कृषि जमीन का दाम चार लाख रूपये बीघा से ही लगाये तो कीमत होती है एक करोड़ ! इसका बेंक ब्याज निकाले तो सालाना 9 %से ब्याज बनता है 9 लाख ! अब खेती से देखे तो बारानी असिंचित जमीन से किसी सुरत में डेढ़ लाख से ज्यादा की फसल नही होगी ! यही कारण है खेती से मोह भंग का ! कोई भी कोर्पोरेट ,व्यापारी ,इंडस्ट्रियलिस्ट यदि अपना कोई उद्योग शुरू करता है तो जमीन ,मशीन ,बिल्डिंग आदि सभी की कोस्ट जोडकर अपने सामान की लागत निकलता है ! तो किसान क्यों नही लागत निकाले ? 
      जोत की जमीन रफ्तार से नही घटे और किसान भूमिहीन न हो ! यदि सरकार वाकई कृषि और किसान का भला चाहती है तो कोई ठोस योजना लानी होगी ! मसलन किसान की खेती लायक जमीन नही बिके बल्कि लीज पर जाये ! जिससे किसान मालिक बना रह सके ! खेती की परस्थितियो के अनुकूल कोई भी जमीन काश्त के आभाव में नही रहे ! सौर उर्जा के लिए सिर्फ बंजर जमीन का उपयोग हो ! कोरपोरेट ,व्यापारी कोई भी जमीन खरीदे तो काश्त अनिवार्य हो ! ये नही की निवेश करके जमीन छोड़ दी ! खेती को राष्ट्रीय संपदा के रूप में जाना जाये ! इस तरह की बहुत सारी बातों पर बहस हो और निचोड़ निकले ! उदाहरण के लिए वाड्रा साहब के यंहा जमीन लेने से खूब राजनीतिक हल्ला गुल्ला हुआ ! मेरा ऐसा मानना है अगर वाड्रा साहब ने जमीन खुली न छोड़ कर खेती शुरू कर दी होती तो शायद इतना हल्ला गुल्ला नही होता ! यंही मुझे लाल बहादुर शास्त्री याद आये !
ग्वार की बिजाई 
 52 वर्षीय जगदेवसिंह चारण बताते है पश्चिम में बीकानेर से बाड़मेर पाकिस्तान बोर्डर तक व पूर्व में देहली एनसीआर तक ग्वार की जबरदस्त बिजाई हुई है !चारण का कहना है में 31 साल से बस का सफर कर रहा हूँ मैंने अपने जीवन में ऐसी बिजाई पहले नही देखी !चारण परिवहन विभाग में टिकिट निरक्षक है ! ग्वार के भाव अभी कई दिनों से 5500 रूपये प्रति क्विंटल के आस पास रुके हुए है !

अमृत की तलाश में बाजार

अमृत की तलाश में बाजार
खेती ,खनिज ,इंडस्ट्री ,आयात ,निर्यात और जरूरत यह सभी मिलकर बाजार रुपी समुन्द्र तेयार करती है ! इनमे से कोई भी धारा बिगड़े तो बाजार का रूप बदल जाता है ! इस समुन्द्र में विष और अमृत दोनों है !किसी के हाथ विष लग जाता है तो किसी के हाथ अमृत ! जिनके हाथ विष लगता है पीना तो उसीको पड़ता है ! पर अब वो शिव नही कहलाते ! वो कहलाते है अज्ञानी ,ड्फोल और मंदबुद्धि ! जिनके हाथ अमृत लगता है वो गुणी ,धीमान ,और समझदार माने जाते है ! यकीन जानिए आज पैसा अधिक लोगो के हाथ से निकल कर तथाकथित चंद गुणी लोगो के पास जा रहा है ! अमीर और अमीर हो रहा है ! तथा गरीब और गरीब होकर गरीबी संख्या में वृद्धि कर रहा है ! आज इस विकसित बाजार में यही कुछ हो रहा है ! एक तरफ वैश्विकरण के नाम पर बाजार को मुक्त किये जाने की घोषणा होती जा रही है ! दूसरी तरफ कई घोड़ो पर सवार सरकार लगाम लगाने का नाकाम प्रयास भी कर रही है ! जिसका नतीजा महंगाई और गिरते रूपये से सामने आ रहा है ! रूपये को संभालने की सारी कवायद बेकार साबित हो रही है !  संभलेगा भी कैसे ? भारत में जंहा बचत संस्कृति थी ! आज प्रगति दिखाने के लिए लोन संस्कृति को बढ़ावा दे दिया है ! इस संस्कृति को फेलाया किसने ? उदाहरण के लिए लोन ने कारों और दुपहियों से सडको को भर दिया है ! अब ये बिना इंधन चलेंगे केसे ? पेट्रोल पर टेक्स भी केंद्र और राज्य सरकारों ने खूब ठोक रखा है ! पर बिक्री नही घट रही ! महंगी मंहगी देशी विदेशी गाडियों को किसान के नाम का सस्ता डीजल क्यों मुहेया करवाया जा रहा है ? बिना जरूरत खर्चों पर रोक क्यों नही ? चार पांच लोगों के परिवार के लिए  सैंकड़ो करोड़ की लागत के मकान क्यों बनने दे रहे है ? जिस देश में करोड़ो लोगों के पास रहने को छत नही वंहा ये अमीरी का दिखावा किसलिए ?अमीर तो भारत में पहले भी थे ! आज भी जब अमीर की बात आती है तो सम्मान के साथ टाटा बिडला का नाम लेते है ! आज के नये रईसों का नही ! यह सब खरा खोटा इस विशाल बाजार का किया धरा है ! इस समुन्द्र में जिसके पास बड़ा जहाज है वो अमृत इकठा करने में लगे है ! बाकि छोटी मोटी किशतिया बाजार में उतरती तो अमृत के लिए है पर फिर खुद को बचाने की सांसत में ही लगी रहती है ! सरकारी नीतिया ही डुबो रही है ! मंत्रीजी का बेतुका बयान देखिये रात को आठ बजे पेट्रोल पम्प बंद करने से इंधन की बिक्री कम जायेगी! मंत्रीजी राजस्थान सरकार से पूछ लीजिये दारू की बिक्री रात को आठ बजे के बाद बंद करदी ! अब बिक्री घटी या बढ़ी ?
                 माना जाता रहा है की सरकार गुणी और ज्ञानवान लोगों से बनती है ! सरकार जो भी कर रही है कुछ सोचकर ही कर रही होगी ? जैसे खाध्य गारंटी ,लेपटोप ,मोबाईल आदि आदि ! उपभोगता सिर्फ अपनी फ़िक्र में निवेदन ही कर सकते है की हे राज के धारी रोजमर्रा के काम आने वाली आवश्यक वस्तुओं के दाम कृत्रम कारणों से नही बढ़े ! इतना ख्याल इस बाजारीकरण की आपा धापी में रख लेंगे तब भी राहत रहेगी ! इस बाजार रुपी समुन्द्र में सरकारी गश्त जरूरी है !     
 सप्ताहिक गतिविधि पर सरसरी नजर......
                 ग्वार में उथल पुथल के साथ तेजी ,डालर में भारी उठा पटक के बाद नरमी ,सोना चांदी में बढत के बाद नरमी ,वायदा बाजार वित् मंत्रालय के अधीन जाने की और ,वेयर हाउसों के लिए नये सरकारी नियामक की घोषणा जल्द ,NSEL का भुगतान संकट कायम ,ग्वार वायदा का दस टन अनुबंध शुरू,सीरिया युद्ध की आशंका के बावजूद जीरा में खास गर्मी नही ,बरसात नही होने से बारानी खेती में नुकसान की आशंका ,वायदा वोलिय्म में गिरावट! कुल मिलाकर बाजार में ग्राहकी के आलावा दूसरी हलचल ज्यादा रही !     

फसलें प्यासी बरसात की जरूरत /ग्वार पर fmc का रूख कड़ा

फसलें प्यासी बरसात की जरूरत 
दिन में गर्मी रात को ठंड ! मौसम है की सपोर्ट ही नही कर रहा ! इस मौसम से फसलों को नुकसान हो रहा है ! बाराणी और नहरी खेती के अनुभवी अजीतसिंह बेलासर का मानना है कि जल्द बारिश नही होती है तो बाराणी खेती चोपट हो सकती है ! खेतो में फसले प्यासी नजर आने लगी है ! नहरी और कुओं से सिंचित फसलों को भी नुकसान हो रहा है ! सिचित क्षेत्र में जितनी इल्ड (उतारा)आनी चाहिये वो नही आयेगी ! मूंगफली ,ग्वार मोठ सभी जिंसो की हालत एक जैसी है! उधर मध्यप्रदेस में ज्यादा बारिश से सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंच ही चूका है! सब कुछ पृक्रती पर निर्भर है ! इसीलिए खेती सबसे बड़ा जुआ है ! इस जुए को खेलना किसान की मजबूरी भी है ! मोसम विभाग ओसत निकाल कर 10 % ज्यादा बरसात बता रहा है ! जिसके आधार पर सरकारी विभाग कृषि उत्पादन बढ़ा चढ़ा कर बता रहा है ! पर हमे ये समझना जरूरी है कि फसल के लिए प्रथम,मध्यकाल व अंतिम बरसात की पोजीसन केसी रहती है !ग्वार ,मोठ, मूंगफली के लिए प्रथम अच्छी बरसात ने भरपूर बिजाई करवा दी ! अब मध्यकाल की बरसात ने गणित गडबड कर रखा है जिसका ओसत से कोई लेना देना नही है ! बरसात नही होती है तो बाराणी किसान खर्चे के बोझ तले आ ही जायेगा !इस जुआरी खेती के वास्ते दूरगामी सरकारी नीति की आवश्यकता है ! सरकार बड़ी बड़ी योजनाये लेकर आती है और अनाप शनाप धन भी खर्च करती है जेसे रोजगार गारंटी ,खाध्य सुरक्षा,शिक्षा आदि फिर भी माकूल व्यवस्था नही हो पा रही ! आगे से आगे और योजनाओं की जरूरत महशुस होती रहती है ! पीड़ा के लिए दवा दे रहें है पर बीमारी का जड़ से इलाज नही कर रहे ! कंही सूखे की मार तो कंही बाढ से हालात खराब ! ऐसे वक्त ठंडे बस्ते में पड़ी अटलबिहारी बाजपेयी की नदी जल जोड़ो योजना की जरूरत महसूस होती है ! आम आदमी को भी लगने लगा है की इस योजना से तिहरा फायदा होगा ! इससे बाढ़ से राहत ,सूखे में सिचाई और जमीन में घटते जल स्तर को संभाला जा सकेगा ! भारत में कृषि क्रांति हेतु ये योजना निर्णायक साबित हो सकती है !
   ग्वार पर fmc का रूख कड़ा 
                    हाजिर और वायदा दोनों में ग्वार ने तहलका मचा रखा है ! ग्वार वायदा में रोजाना कभी उपर का सर्किट तो कभी निचे का सर्किट ! वायदा बाजार आयोग ने ग्वार खरीददार पर अतिरिक्त मार्जिन भी लगा दिया है ! अब आयोग ने छानबीन करने के लिये एक्सचेंजों से टॉप ट्वेंटीफाइव ग्वार कारोबार करने वालों की सूची मांगी है ! जाहिर है वायदा बाजार आयोग पिछली ग्वार की सट्टेबाजी से सावधान है और नकेल कसने की तेयारी में है ! गुरुवार को हाजिर बाजार में भी ग्वार ने वायदा को पीछे छोड़ दिया ! गुरुवार को सुबह दस बजे नो हजार रूपये प्रति क्विंटल बिकता  हुआ चार घंटे बाद ही आठ हजार रूपये प्रति क्विंटल बिकने लगा ! हाजिर और वायदा दोनों की उठा पटक ने मध्यम वर्गीय कारोबारियों को ग्वार से दूर रहने की सीख तो दे ही दी है ! वायदा बाजार आयोग के चेयरमेन रमेश अभिषेक ने वेयरहॉउसिंग,क्वालिटी कंट्रोल,गलत फंडिंग,अनर्गल तेजी मंदी,संगठित सटेबाजी जैसे मुद्दों पर कठोर रवैया अपनाना शुरू कर दिया है ! मेरा मानना है कि इसके दूरगामी परिणाम सामने आयेंगे ! छोटे कारोबारियों के लिए सुगमता से ही वायदा बाजार विस्तृत रूप ले पायेगा तथा व्यापार करने वाले भागीदारों की संख्या में बढ़ोतरी हो पायेगी !