रविवार, 15 सितंबर 2013

पैदावार लायक जमीन को खाली छोड़ना ठीक नही

पैदावार लायक जमीन को खाली छोड़ना ठीक नही 
1965 मेंभारत के माननीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आह्वान किया था अनाज की कमी से निपटने के लिए किसी भी सुरत में पैदावार दे सकने वाली जमीन को बुवाई से खाली मत रखो ! सप्ताह में एक समय खाना मत खाओ ! खुद प्रधान मंत्री निवास में बैलो से हल चलाकर बुवाई की ! जनता ने घरों में खुली पड़ी जमीन पर सब्जिया उगानी शुरू की ! इसका अच्छा नतीजा सामने आया ! देश ने अपने तरीके से समस्या का निदान किया ! अस्तु !
पिछले सप्ताह मेने डालर,सोना,खाद्यान,उर्जा और मजदूरी के बारे में तुलनात्मक अध्यन के लिए नये- पुराने भावों को आपके सामने रखा ! यह किसान की उपज,हालात और उपभोक्ता को भावों की दृष्टि से देखने का प्रयास था!
कृषि जमीनों के बढ़ते भाव और खेती 
 इसी कड़ी में मैंने किसानो से जमीन और जोत के बारे में बात की ! जानने का प्रयास किया जमीनों के बढ़ते भावों से खेती में नफे नुकसान का ! सीधी साधी बात करें तो आबादी बढ़ रही है जोतने लायक जमीन कम हो रही है ! आबादी के हिसाब से कल कारखाने,सड़के और रिहाईशी उपयोग से जोत घटी है ! अंदरखाने झांके तो कुछ और भी कारण है जिससे किसान भूमिहीन हो रहा है ! और खेती घाटे का सौदा लग रही है ! थोडा नजदीकी इतिहास देखे तो बीकानेर जिले में सन 1990 -1992  में ठीक ठाक बारानी जमीन 700 से 1000 रूपये बीघा के बीच मिल जाती थी ! इसी समय नहरीकरण की योजना से पंजाब हरियाणा व स्थानीय किसानो ने खेती लायक जमीने लेनी शुरू की ! और सन 2000 -2001तक कीमते बढ़ते बढ़ते10000 रूपये बीघा हो गई ! यंहा तक तो ठीक था ! खेती करने वाले किसान ही खेती की जमीने ले रहे थे ! इसके बाद नया दौर शुरू हुआ ! महानगरो में रहने वाले आप्रवासी राजस्थानियों में प्रचार प्रसार शुरू हुआ की दस हजार रूपये बीघा की जमीन तो सिर्फ 35 पैसे स्कवायर फुट में ही मिल रही है ! जबकि कागज के भी यही दाम है ! तो क्यों नही जमीन ली जाये ? बस यंही से तेजी का दौर चालू और खेती की जमीने कारोबारियों ने निवेश के रूप में लेने की कवायद शुरू कर दी ! कारोबारियों ने दलालों के माध्यम से बिना जमीन काम मोका देखे ही कागज के भावों वाली जमीने खरीदनी चालू की और अगले पांच सालों में ही सन 2005 -2006 तक भावों को 80000 -85000 रूपये प्रति बीघा तक पहुंचा दिया ! पांच साल में ही कीमते आठ गुणा तक बढ़ जाने से खरीददारो में अतिरिक्त उत्साह जगा ! फिर तो इन्ही खरीददारो ने नई  नई उत्साहवर्धक योजनाये बनाकर प्रचार प्रसार किया जिससे जमीने खरीदने वालों की बाढ़ सी आ गई !योजनाओं में सबसे ज्यादा प्रचार इस बात का था कि आयकर माफ़ कृषि आधारित फसल से सालाना आयकर बचाया जा सकता है और साथ ही निवेश के रूप में जमीन भी सुरक्षित यानि एक काम से दो फायदे !पचीस बीघा (एक मुरबा )में सालाना चार लाख की फसल बताकर एक लाख बीस हजार रूपये आयकर की बचत !साथ ही यह प्रचार की सरकार नई नई योजनाये ला रही है जैसे सिलिकोन वेल्ली,सौर उर्जा ,ड्राई पोर्ट ,लिग्नाईट,सेज मेगा फ़ूड पार्क आदि आदि !इस प्रचार से नये खरीदारों का उदय हुआ इसमें राजनीतीज्ञ ,कोर्पोरेट ,और बाहरी लोग शामिल थे !इन लोगों ने अँधाधुंध जमीने खरीदनी शुरू की और पांच सालों में जमीनों के भाव सन 2011-2013 में ही 5 लाख रूपये प्रति बीघा तक पहुंचा दी ! गौर तलब है की यह भाव उन जमीनों के है जो शहर से दूरस्थ ग्रामीण इलाकों की है !शहर के पास वाली और राष्ट्रीय राजमार्ग के उपर की जमीने तो आसमान छूने लगी और इसके भाव प्रति बीघा 10 लाख से 15 लाख रूपये तक हो गये !इन भावो ने नये कारोबारी खड़े किये !यह कारोबारी थे कालोनिया और फार्म हॉउस व्यापार को पनपाने वाले !इन व्यापारियों या कंम्पनियो का फंडा बिलकुल सटीक और मुनाफे वाला था !और आनन फानन में कृषि भूमि पर सेंकडो कालोनिया और फार्म हॉउस विकसित होने लगे !इन जमीनों के ग्राहक भी भरपूर मिलने लगे !जो छोटे निवेशक है !इनमे बसने वाले कम और इन्वेस्मेंटर ज्यादा है ! जमीन की लोकेशन के आधार पर भिन्न भिन्न दामों से बिक्री लाभ का सौदा बन गया ! दो सौ रूपये वर्ग फुट से आठ सौ रुपया वर्ग फुट के दामो से कालोनियों की जमीने बिकने लगी !कालोनियों की इन जमीनों से 40 %सेट बेक (सड़के ,नाली ,पार्क आदि )छोड़ने पर भी 32 लाख से एक करोड़ तीस लाख रूपये प्रति बीघा तक के पैसे कोलोनाइजर को मिलने लगे! इसमें सडक ,नाली ,बिजली ,पानी आदि की व्यवस्था खर्च भी निकल दे तब भी यह बड़े मुनाफे का व्यापार हो गया ! देखते ही देखते जमीन दलालों की एक फौज खड़ी हो गई !पहले कृषि भूमि फिर प्लाट ,फार्म हॉउस आदि के सौदे कराने में इन दलालों का खूब योगदान रहा !
  किसान और जमीन 
           अब फिर हम अपने मूल विषय किसान और जमीन पर आते है !और देखते है खेती क्यों घाटे का सोदा हो रही है !किसान की पचीस बीघा कृषि जमीन का दाम चार लाख रूपये बीघा से ही लगाये तो कीमत होती है एक करोड़ ! इसका बेंक ब्याज निकाले तो सालाना 9 %से ब्याज बनता है 9 लाख ! अब खेती से देखे तो बारानी असिंचित जमीन से किसी सुरत में डेढ़ लाख से ज्यादा की फसल नही होगी ! यही कारण है खेती से मोह भंग का ! कोई भी कोर्पोरेट ,व्यापारी ,इंडस्ट्रियलिस्ट यदि अपना कोई उद्योग शुरू करता है तो जमीन ,मशीन ,बिल्डिंग आदि सभी की कोस्ट जोडकर अपने सामान की लागत निकलता है ! तो किसान क्यों नही लागत निकाले ? 
      जोत की जमीन रफ्तार से नही घटे और किसान भूमिहीन न हो ! यदि सरकार वाकई कृषि और किसान का भला चाहती है तो कोई ठोस योजना लानी होगी ! मसलन किसान की खेती लायक जमीन नही बिके बल्कि लीज पर जाये ! जिससे किसान मालिक बना रह सके ! खेती की परस्थितियो के अनुकूल कोई भी जमीन काश्त के आभाव में नही रहे ! सौर उर्जा के लिए सिर्फ बंजर जमीन का उपयोग हो ! कोरपोरेट ,व्यापारी कोई भी जमीन खरीदे तो काश्त अनिवार्य हो ! ये नही की निवेश करके जमीन छोड़ दी ! खेती को राष्ट्रीय संपदा के रूप में जाना जाये ! इस तरह की बहुत सारी बातों पर बहस हो और निचोड़ निकले ! उदाहरण के लिए वाड्रा साहब के यंहा जमीन लेने से खूब राजनीतिक हल्ला गुल्ला हुआ ! मेरा ऐसा मानना है अगर वाड्रा साहब ने जमीन खुली न छोड़ कर खेती शुरू कर दी होती तो शायद इतना हल्ला गुल्ला नही होता ! यंही मुझे लाल बहादुर शास्त्री याद आये !
ग्वार की बिजाई 
 52 वर्षीय जगदेवसिंह चारण बताते है पश्चिम में बीकानेर से बाड़मेर पाकिस्तान बोर्डर तक व पूर्व में देहली एनसीआर तक ग्वार की जबरदस्त बिजाई हुई है !चारण का कहना है में 31 साल से बस का सफर कर रहा हूँ मैंने अपने जीवन में ऐसी बिजाई पहले नही देखी !चारण परिवहन विभाग में टिकिट निरक्षक है ! ग्वार के भाव अभी कई दिनों से 5500 रूपये प्रति क्विंटल के आस पास रुके हुए है !

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