गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009
वायदा में लिमिट पर विचार क्यों नही
वायदा बाजार में एग्रो कोमोडिटी जिस तरह से चल रही है और हर मिनिट जिस तरह से तेजी मंदी बन रही है उससे लग रहा है कई सुधारों की जरूरत है !मसलन वायदा सोदे की लिमिट ?आज चने का उत्पादन पचास लाख टन और सोयाबीन का नबे लाख टन इन जींस की जितनी लिमिट वायदा में है उतनी ही लिमिट ग्वार में है जबकि ग्वार का ओसत उत्पादन सात लाख टन ही है और इसी तरह अन्य जिंसों में भी उत्पादन का बहुत फर्क है और लिमिट में कोई खास अंतर नही है !मेरा विचार है की आवश्यक वस्तुओं की जो सूचि है उनकी वायदों से लिमिट कम कर देनी चाहिए !जब सेंट्रल गोवर्मेंट स्पॉट में लिमिट लगाने के लिए राज्य सरकरों को कह रही है तो वायदा में छुट क्यों ?और जहाँ तक अन्य जिंसों में लिमिट की बात है उस पर सरकार को विचार आमंत्रित करने चाहिए !कोई आम आदमी केसे मान लेगा की हर मिनिट ऐसा क्या होता है की बाजार उपर निचे हो जाए !किसान को तो पले ही नही पड़ता है की आधा घंटा पहले साथ वाले किसान से मेरा मॉल निचा या ऊँचा क्यों बिका !
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5 टिप्पणियां:
वायदा कारोबार का इस्तेमाल जिस बात के लिए किया जाना चाहिए उसके लिए हो नहीं हो रहा. तमाम पार्टिसिपेंट स्पेकुलेट करने का काम कर रहे हैं. सरकार को टैक्स मिल रहा है शायद इसलिए सरकार भी आँखें मूंदे बैठी है. किसी न किसी दिन दो मारे जायेंगे. पार्टिसिपेंट भी और सरकार भी. लिमिट न लगाकर ऐसे ही चलते रहे. क्रूड आयल जैसा हाल होगा किसी दिन. कन्जम्पशन, कारोबार और वायदा कारोबार में तारतम्य नहीं रहेगा और सब एक साथ धरासाई.
आदत के अनुसार जब विपत्ति आती है तब हम कुछ करते हैं.
तेजी मंदी आयेगी चाए सरकार लिमिट लगाये या नहीं ........
तेजी आते ही वायदा बुरा क्यों लगता हैं ....वास्तविकता छुपाने से नहीं छुपेगी .........वायदा तो शुरु ४ साल से ही हैं ......हाजिर मैं गवार १९९९ मैं ३३०० का ९०० आया था ......जीरा १४५०० का ६००० मैं लेवाल नहीं थें..........मांग और पूर्ति के हिसाब से तेजी मंदी आयेगी ............
फसल सामने खड़ी हैं और मूंग आसमान छु रहा हैं भावः ३००० वाला ५५००-६००० बिक रहा हैं ....वायदा मैं तो मूंग नहीं हैं फिर इतनी तेजी क्यों ........सोचो ....जवाब एक ही आयेगा ..फसल ही नहीं हैं तो सरकार तो पैदा करने से रही मूंग .....और यह भी बता दूं की वायदा मैं अगर चना भी हटा दे तो यह अभी ४००० होता ........सोचो
फसल सामने खड़ी हैं और मूंग आसमान छु रहा हैं भावः ३००० वाला ५५००-६००० बिक रहा हैं ....वायदा मैं तो मूंग नहीं हैं फिर इतनी तेजी क्यों ........सोचो ....जवाब एक ही आयेगा ..फसल ही नहीं हैं तो सरकार तो पैदा करने से रही मूंग .....और यह भी बता दूं की वायदा मैं अगर चना भी हटा दे तो यह अभी ४००० होता ........सोचो
कमोडिटी एक्सचेंजों में कुछ कमोडिटी में देश की कुल फसल, कुल आयात और कुल मांग एवं भंडारण से ज्यादा कारोबार हो रहा है। कई बार तो यह कारोबार समूची दुनिया के उत्पादन का आधा तक होता दिख रहा है। कमोडिटी एक्सचेंजों की कार्यशैली और उनका प्रशासन कई मसलों पर शंका के दायरे में है। शेयर बाजार की तरह इन्हें ज्यादा पारदर्शी बनाया जाना चाहिए अकेली लिमिट घटा बढा देने से कुछ नहीं होगा। लोग साफ कहते हैं कि एक्सचेंज के लोग ही बैठकर दो कंप्यूटरों पर वोल्यूम बढ़ाने का कार्य करते है। पैसे देकर आप अपने प्रतिस्पर्धी सटोरिएं के सौदों की सूचनाएं ले सकते हैं। एक्सचेंज वाले कारोबारियों को बुलाकर खुद कहते हैं कि हमारे यहां सट्टा खेलो हम किसी को हवा नहीं लगने देंगे। क्या यह सब अच्छे कारोबार में जायज है। ढेर सारे मसले पर है जिन पर यहां लिखना काफी लंबा मामला हो जाएगा। लेकिन ये बातें अपने आप पैदा नहीं हुई हैं। कुछ तो होगा कि जो ये बातें हुई। कारोबारियों को एक्सचेंजों पर भरोसा ही नहीं है, वे यहां चोरवाडा चलने की बात करते हैं। एक्सचेंज पहले अपना भरोसा पैदा करें। एफएमसी को भी पूरे अधिकार मिलने चाहिए और सारी व्यवस्था को चुस्त बनाना होगा। कड़ी कार्रवाई की जाए जो गलत तरीके से सट्टा के सिरमौर बने हुए हैं उनके खिलाफ। एफएमसी को दंतविहिन और नखविहिन शेर बना रखा है सरकार ने जो किसी काम का नहीं। बगैर रेग्यूलेटर बिजनैस हिंदुस्तान में ही हो सकता है और कहीं नहीं।
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