बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

आज की गलती फिर एक गुलामी की दास्ताँ लिख सकती है !

लोकतंत्र  के चार खम्भों में से तीन पर भ्रस्टाचार के आरोप इन दिनों खूब जोर शोर से लग रहे है! ये क्या हो गया है हम किस रसातल में जा रहे है क्या उस रसातल से बाहर आने का कोई रास्ता मिलेगा ? या हम इस भ्रस्टाचार को स्वीकारने के आदि हो जायेंगे? जिस तरह आज हम रिश्वत खोरी के अभ्यस्त हो चुके है और मान चुके है की इतनी रकम लेकर कोई काम करता है तो ये बिचारे की मेहनत है जेसे कोई बाबु किसी फार्म को जमा करने के लिए 100 रुपय मांगता है तो ठीक है पर उसी काम के 500 मांगे तो वो बेईमान है गंदा है खराब है इसी तरह की धारणाये तो बन चुकी है यानि हमने इस रूप को स्वीकार कर लिया है ये सारी बातें हमारे मस्तिक में घर कर चुकी है और अब 2 कदम आगे बढ़ते हुए इसके बड़े रूप को स्वीकार करने जा रहे है जेसे बड़े -बड़े घोटाले सताधारियों के, उससे भी आगे विपक्ष की भूमिका निभाने वाले दलों की स्नदिघ्धता पूर्ण कारगुजारिया और बड़े मिडिया घरानों पर लगते आरोप कहाँ ले जा रहे है कोन सा खम्भा बचा है ? सिर्फ  एक खम्भा जिस पर अब तक भरोसा बचा है वो है  न्यायपालिका, क्या इस तरह बढ़ते भ्र्स्ताचारी दानव के मुंह से इस एक मात्र खंभे को भी हम बचा पाएंगे सोचना होगा आज की गलती फिर एक गुलामी की दास्ताँ लिख सकती है !

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